मन सुन्दर तो तन सुन्दर
मन सुन्दर तो तन सुन्दर
मन एक मंदिर है, देव
दानव तत्व युक्ति से
सुसज्जित तन घर जैसा
बसते जिसमें आकर्षण,
भोग, विलास और ज्ञान!!
पंच करमेन्द्रिय,
पंच ज्ञान इन्द्रिय के
मध्य मन विचलित
समझ नहीं पाता,
जाए तो कहाँ जाए!!
ज्ञान योग से
कर्मयोग, जीवन का
पथ मोक्ष बनाए या
मिले जीवन, तन
काया से मन गति के
पीछे जाए!!
तन मन दोनों ही स्वाद,
स्वार्थ, आनंद भोग के
रोगी कर्मेन्द्रिय आनंद
भोग का भौतिक वाद
सिद्धांत सदा!!
सुंदरता क्षणिक, जीवन
भोग बाद ही जन्म जीवन
सत्यार्थ!!
योग भोग का अंकुश, ज्ञान
तत्व का संगी योग भोग को
करे नियंत्रण, मन गति भक्ति
भाव सार्थक साम्राज्य!!
समर्थक तन मन एक
दूजे के पूरक तन में मन
बसता, मन में तन की
चाहत चाह!!
तन सुंदर तो मन सुंदर
तन मैला दूरग्रह से दूषित
समझो मन भटका अटका
स्वार्थ में भोग भाग्य भगवान,
भय भ्रम मे अटका!!
समय काल, कर्म मर्म
महिमा अर्थ में तन
सुंदर का अर्थ सत्य,!!
मन सुंदर आवश्यक
समदर्श मन की सुंदरता ही
तन की सुंदरता आत्म
चेतना परमात्मा प्रारबद्ध!!
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश!!
