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मिली साहा

Abstract

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मिली साहा

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मन की आवाज़

मन की आवाज़

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ख़ामोशी के आगोश में तन्हा जब कभी मैं बैठता हूँ,

मन से आती एक आवाज़ तो विचलित हो जाता हूँ,


मन के कोने- कोने में गूंजती आवाज़ शोर मचाती है,

गौर से कभी सुनो तो वो हमसे कुछ कहना चाहती है,


कभी खुशी का उफान तो कभी दुख की गहराई बताती है,

कभी प्यार -मोहब्बत की बातें तो कभी हमें दर्द सुनाती है,


उलझे जीवन में मन की आवाज़ ही सही दिशा दिखाती है,

हिम्मत कर सब कुछ अच्छा होगा कानों में आकर कहती है,


मन की आवाज़ एक उम्मीद है,

जिसकी दहलीज पर मुस्कान खड़ी होती है,


बिना लफ़्ज़ों के ही सब कुछ कह देती है,

मन की आवाज़ ही दिल की आवाज़ होती है।


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