मन का झरोखा
मन का झरोखा
बंद कर चुके मन का झरोखा तो
प्रेम का प्रकाश कहांँ प्रवेश कर पाएगा
खुद पर ही नहीं रहा अब तुम्हारा विश्वास
तो मंजिल का रास्ता तुम्हें कहांँ नज़र आएगा।
क्यों इतनी नफ़रत कर इस ज़िंदगी से
खुद को ही दिए जा रहे हो तुम एक सज़ा
ये ज़िन्दगी तुम्हारी है उम्मीद जगा कर तो देखो
नजर उठा कर तो देखो रास्ता ज़रूर नज़र आएगा।
दुःख किसके जीवन में नहीं है आता
जीवन ये जंग है लड़ना सभी को पड़ता है
तुम कोशिश कर बस एक कदम तो बढ़ाओ
देखकर तुम्हारी हिम्मत ये तूफ़ान भी ठहर जाएगा।
जब तक सांँसे चलेंगी जीना तो पड़ेगा ही
फिर हर लम्हा यहांँ घुट- घुट कर क्यों जीना
सफ़र सभी को पूरा करना पड़ता है हर हाल में
आखिर ज़िंदगी से बगावत कर कौन किधर जाएगा।
इसलिए खोलो अपने मन का झरोखा
देखो ज़िन्दगी खड़ी है कैसे बाहें फैलाकर
एक बार तो प्यार से गले लगा कर तो देखो
धीरे-धीरे मुश्किलों का ये दौर भी गुज़र जाएगा।