मलिनता से बाहर निकालें
मलिनता से बाहर निकालें
बात ऐसी भी क्या हो गयी हमसे ,
मलिनता माथे पर छलकने लगी !
शिकन चेहरे पे यूँ ही छाने लगी ,
बीती हुयी बातें याद आने लगी !!
क्षणमात्र का विभेद हो जाता है ,
कभी शालीनता को हम तोड़ते है !
शिष्टाचार के पथ से भटक कर ,
मर्मभेदी बाण को हम छोड़ते हैं !!
शंकाएँ साहित्य में होती यहाँ पर ,
लेख में भी मतान्तर का योग है !
अच्छे मित्रों और सुधारक का ,
मिलना बड़ा अद्भुत संयोग है !!
आलोचनाओं और प्रतिक्रिया को ,
हम शिरोधार्य करना जानते हैं !
सबकी बातों को भली भांति हम ,
स्वीकार करना सदा ही जानते है !!
राजनीति विचारें भिन्य होती हैं ,
विभिन्य ग्रह के लोग बन जाते हैं !
अपने सिध्यांतों को लेकर सदा ,
शालीनता को तोड़ते रहते हैं !!
समंजस ,सद्भाव ,स्नेह, प्रेम से हम ,
सबको यदि ह्रदय से स्वीकार लेंगे !
मलिनता ,शिकन को भूल जायेंगे ,
सबको अपनी आँखों में बसायेंगे !!