मकसद ढूंढे
मकसद ढूंढे
यह दुनिया फानी है
अजब इसकी कहानी है
मंजर इसके तूफानी है
अलग इसकी रवानी है
पग पग यहां पथरीले हैं
सब के मन ज़हरीले हैं
बेबसी की दलीलें है
ठंडी रक्त की झीलें है
सोचते है हम रम जाएंगे
धाराओं संग बह जायेंगे
सुलभ सुलझ राह पाएंगे
निगाहों में बस जायेंगे
पर टेड़ी मेड़ी गलियां हैं
मुरझाई हुई कलियां हैं
आक्रोश भरी अँखिया हैं
नफरतों की नदियां हैं
मकसद अपना ढूंढते चलें
हसरतें कुछ कम कर डालें
नफरतों की गांठें खोलें
उगा दें खुशियों की डालें
फिर देखो बगिया महकेगी
हर चिड़िया फिर चहकेगी
रूह न किसी की दहकेगी
कोई कली फिर न बहकेगी।