STORYMIRROR

Bhawna Kukreti Pandey

Abstract

4  

Bhawna Kukreti Pandey

Abstract

मजबूत होना

मजबूत होना

1 min
23.3K

बड़ी बडी

बातों पर ये दिल

कभी नहीं रोया।


ये बस

जी की, जिंदगी की

छोटी छोटी बातें होती थीं

जिन पर आंखें भीग जाती थीं।


सबको लगता

कुछ ओवर सेंसिटिव,

कुछ इम्प्रक्टिकल


सी हूँ मैं,

धीरे धीरे सबकी,

मेरी ख़ुद की नजरों में ये

अनाथ आंसू गौण हो गये।


मगर वे

झरते ही रहे

बिना किसी शोर के

मेरे ही छुपाए हुए रुमाल के अन्दर।


बूँद बूँद

आंसूओं के कम होने से

शायद सबको,मुझको लगा

मैं अंदर से मजबूत बन रही हूँ ।


शायद ऐसा ही है,

अब किसी भी बात पर

चाहूं भी तो मेरे आंसू ही नहीं आते।


पूछती है निशा समय की सुइयों में,

क्या हृदय की 'भावना' खत्म हो चुकी ?


क्या छोटी छोटी बातों पर आँख नम करती,

मैं पत्थर हो चुकी मजबूत हो चुकी ?


मुझे अब कोई उत्तर देने की आवश्यकता नही लगती,

उत्तर व्यर्थ लगते है तब आंसुओं में उत्तर ही तो होता था।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract