मिलन ऋतु
मिलन ऋतु
उमड़-घुमड़ जब-जब घिर आई, श्याम घटा घनघोर।
मधुर मिलन की ऋत बौराई, बगिया में चहुँ ओर।।
मधुप मगन, मृग, खग कलरव कर
उल्लसित करत उलेल।
हरित चमन में मोर-मयूरी
हर्षित खेलें खेल।
जलत जिया विरहिन का, प्रमुदित, चंदा और चकोर।
मधुर मिलन की ऋत बौराई, बगिया में चहुँ ओर।।
पागल मनवा इत-उत धाए,
सुन कोयल की कूक।
केलि मयन-रति देख उठे मन
एक अजब-सी हूक।
राह तकूँ प्रिय अब तो आजा, भीगे नयना कोर।
मधुर मिलन की ऋत बौराई, बगिया में चहुँ ओर।।
सुभग कमल-दल शोभित सरवर
सुरभित मलय समीर।
कुंजगलिन में वंशी धुन सुन
राधे होत अधीर।
सुधबुध खोए ढूँढ रही, किस ओर गया चितचोर।
मधुर मिलन की ऋत बौराई, बगिया में चहुँ ओर।।