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Niraj Sharma

Romance

3  

Niraj Sharma

Romance

मिलन ऋतु

मिलन ऋतु

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उमड़-घुमड़ जब-जब घिर आई, श्याम घटा घनघोर।

मधुर मिलन की ऋत बौराई, बगिया में चहुँ ओर।।


मधुप मगन, मृग, खग कलरव कर

उल्लसित करत उलेल।

हरित चमन में मोर-मयूरी

हर्षित खेलें खेल।


जलत जिया विरहिन का, प्रमुदित, चंदा और चकोर।

मधुर मिलन की ऋत बौराई, बगिया में चहुँ ओर।।


पागल मनवा इत-उत धाए, 

सुन कोयल की कूक।

केलि मयन-रति देख उठे मन

एक अजब-सी हूक।


राह तकूँ प्रिय अब तो आजा, भीगे नयना कोर।

मधुर मिलन की ऋत बौराई, बगिया में चहुँ ओर।।


सुभग कमल-दल शोभित सरवर

सुरभित मलय समीर।

कुंजगलिन में वंशी धुन सुन 

राधे होत अधीर।


सुधबुध खोए ढूँढ रही, किस ओर गया चितचोर।

मधुर मिलन की ऋत बौराई, बगिया में चहुँ ओर।।



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