मिलजुल कर करें काम
मिलजुल कर करें काम
बात बात में बात कहूँ ये
बात है मज़ेदार
एक पिता के दो बेटे थे
एक था कारोबार।
अच्छा ख़ासा चलता रहता
उनका ये व्यापार
धीमा पड़ गया सब कुछ जबसे
पिता हुआ बीमार।
दोनों बेटे चिंतित दिखते
काम न आया कोई उपचार
पिता ने बोला- मैं थक गया
अब तुम दोनों संभालो ये भार।
दोनों भाई निकल पड़े अब
लिए सपने हज़ार
मिलजुल कर काम करेंगे
होगा पिता का सपना साकार।
पड़ोस वाले दुकानदार की
फितरत थी बेकार
झूठी चुगली करते करते
करा दी दोनों में टकरार।
दोनों होकर आग बबूले
मिटाया आपसी प्यार
देख बूढ़ा बाप सहम गया
उनके बीच की दरार।
इक दिन उसने कहा चिल्लाके
छोड़ दूंगा ये संसार
दोनों दौड़े आ खड़े हुए
आँखे थी शर्मसार।
बना के खून को पसीना मैंने
खड़ा किया था ये कारोबार
लड़ झगड़ कर तोड़ दिया सब
बिखेरदिय खुशहाल से घर-परिवार।
अब तो मैं ही चला जाऊंगा
छोड़कर ये संसार
टैब तुम दोनों करते रहना
अपना ये व्यापार।
लोग जलेंगे, आग फूंकेंगे
तुम तो हो ज़िम्मेदार
पराई चुगली सुनकर दोनों
भूल गए संस्कार।
अब दोनों ने ग़लती मानी
आपस में किया विचार
फिर से दोनों एक हुए
सुनीं दिल की पुकार।
फिर तो जैसे दिन दुगनी एयर
रात चौगुनी से बढ़ा कारोबार
देख चुगलीखोर जलभुन रह गया
दोनों 'एक और एक ग्यारह' हुए इस प्रकार।