महाकुंभ - ओनली गौतम
महाकुंभ - ओनली गौतम
बिन सोचे, अकस्मात ही निकल गया प्रयागराज,
सोचा, क्यों न डुबकी लगाई जाए आज।
पहुंचा जब संगम घाट, तो देखा बहुत भीड़ थी,
क्यों न घुमा जाए पहले, यही तो हमारी नीड़ थी।
कुछ दूर गया तो देखा, एक बच्ची रो रही थी,
पता नहीं क्यों, थोड़ी देर पहले तो ये सो रही थी।
"क्या हुआ बेटा, कुछ खाना है?"
"नहीं, मुझे बस माँ के पास जाना है।"
सहसा जागा मैं, देखा कि मैं कितना भाग्यशाली हूं,
जो बनाता अभी भी घरवालों के साथ दिवाली हूं।
"आओ बेटा, मेरे साथ चलो, माँ मेरे पास है।"
वो यूं चल पड़ी जैसे मामा उसके साथ है।
कुछ कोशिश कर मैंने उसको माँ से मिला दिया,
डुबकी लगाने से पहले ही, मैंने कुंभ नहा लिया।
