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anjali singh

Romance

4  

anjali singh

Romance

मेरी उलझन

मेरी उलझन

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बैठी थी मैं यूं ही शायद,

या फिर शायद सोच रही थी,

ना जाने किस ओर था मन मेरा,

हर पल हर दिन कुछ खोयी सी थी मैं,

कुछ परेशान सी थी,

या कुछ खुश सी थी,

समझ में कुछ न आया ,

पर ना जाने कुछ बेचैनी सी थी,

दिल से शायद खुश थी,

पर शायद मन से दुःखी भी थी,

कैसे सुलझाऊँ इस गुत्थी को मैं,

जिस उलझन में फंसी मैं थी,

बैठी थी मैं यूं ही शायद

या फिर शायद सोच रही थी...


प्यार हुआ था शायद मुझको,

फिर भी ना जाने किस उलझन में थी,

शायद लोगों की नजरों में है ये बचपना मेरा,

पर सच में, ये है सच्चा प्यार मेरा,

डरी हुई सी थी मैं शायद,

या फिर शायद थी परेशान,

इस उलझन को लेकर की...

क्या होगा आखिर कुछ दिनों बाद,

जब होगी दिल की बात,...

इसलिए डरती हूं हर दिन-हर रात,

ना जाने क्या होगा...यही है बस उलझन मेरी,

इसलिए बैठी हूँ बस यूं ही शायद,

या फिर शायद कुछ सोच रही हूं। 


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