मेरी तलाश
मेरी तलाश
धारा क्यों तलाश रही मैं
ख़ुद मैं ही जब हूं धारा
समुन्दर तट क्यों ढूंढूं
ख़ुद मैं ही जब हूं किनारा!
सपने नहीं बुनने अब मैंने
ख़ुद मैं ही हूं जब सपना
क्यों ढूंढूं सुरज चंदा तारे
है इन सब पर जब छाप मेरी!
बूंद भी मैं ही , विशाल सागर भी
बिजली की कौंध भी मैं ही
बादल की गर्जना भी मैं ही
पेड़ों में,पहाड़ों में,लहलहाते खेतों में मैं ही!
किस 'मैं' को ढूंढ रही , मैं नादान
जब चारों ओर , 'मैं' ही 'मै'' हूं-
क्यों सीमाओं में बांध रही हूं
अपनी अस्मिता को,अपने ही हाथों!