मेरी प्यारी माँ
मेरी प्यारी माँ
आयी थी इस दुनिया मे मैं मासूम और अंजानी,
बिन रंग रूप जांचे तुमने मुझे सीने से लगाया था,
अपनी पिठ पीड़ा भूल तुम रोते रोते मुस्कुराई थी माँ,
उसी क्षण मैने पहचाना था सबसे बड़ा ज्ञानी ।
मुझ मे तो तुम खो सी जाती थी,
मुझे नहलाना,सुलाना , मुझे बहला के ही प्रभु का ध्यान लगाती थी।
इतने सालो मे भी तुम्हारा दुलार कम हुआ नही,
वही अपनापन, उत्साह से भरी तुम मां वही।
मेरे दुख तुम्हारे होते देर नहीं लगती,
लहू मेरा बहता और दुपट्टा तुम भिगोती।
भरी रात मे मेरे तपते माथे पर ठंडे पानी की पट्टी करती,
और सुबह खुशी से नाश्ता परोसने मे तुम्हे ज़रा सी भी देर नहीं लगती।
आज कलम पकड़ के लिख तो रही हूं मां,
पर मेरी हैसियत कहा
की उस देवी की व्याख्या कर सकूं,
जिसने मुझे बनाया है।