मेरी माॅ॑!
मेरी माॅ॑!
दुलार सुन एक ही बात ध्यान में आई।
लगा गर्मी में चली है कोई पुरवाई।
शीतलता के झूले में जो झुलाती है,
लाड़-चाव की चंवर जो डुलाती है।
माॅ॑ मेरी कहती थी जो बात
सबसे अलग वो उसे बनाती थी।
बेटी है, बेटी रहने दो,
घर में खुशियां फैलाने दो।
इतनी जल्दी क्या है?
उसे अदब-कायदे सिखाने की!
खुशबू से घर को महकने दो,
बेटी है, बेटी रहने दो।
मुस्कान को उसकी निहारने दो,
इतनी जल्दी क्या है?
उसे बंधनों में बाॅ॑धने की!
बचपन को पल्लवित होने दो,
बिटिया को आंगन में चहकने दो,
मनचाहे क्षेत्र को चुनने दो,
बेटी को खुला आसमां देने दो।
बेटी है, बेटी रहने दो!
बचपन की वो मासूमियत,
वो लाड़ से माॅ॑ के गले में झूल जाना,
भाई-बहन से तकरार, प्यार,
वो रूठना और मनाना,
एक टॉफी की रिश्वत पर,
पापा से भाई की सिफारिश करना।
खेल में एक चांस ज्यादा लेने पर,
खुशी से झूम जाना,
माॅ॑ का परीक्षा में सफल,
होने के लिए प्रार्थना करना।
परिणाम घोषित होने पर,
प्रसाद चढ़ाकर,
पापा का मनपसंद
शाॅपिंग कराना।
बचपन, तू बहुत याद आता है,
बच्चा बनने को जी करता है।
कभी लौट कर एक झलक
फिर से दिखला जा, बचपन।
माॅ॑ है तो मनुहार है,
ममता की फुहार है।
आंचल में समा जाए,
जिसके सारा संसार है।
वात्सल्य का भंडार है,
दिल में जिसके प्यार है।
माॅ॑ का कभी दिल न दुखाना,
हर सूं यह कोशिश करना।
नहीं जान सकते कि
माॅऺ के बिना कैसा मेरा संसार है?
आसमान में कोई तारा टूटे,
लगे माॅ॑ आ जाए कहीं से।
वो बैठी रहें मैं गोद में सिर रखूं।
बस आरज़ू यही है मेरी,
दिल पूछता है,
क्या ज्यादा मांग लिया मैंने?
ममता का है सागर अपार,
ऐसा ही होता है माॅ॑ का प्यार।
झोली भर दुलार करें माॅ॑ ,
जिसकी न कोई उपमा है,
माॅ॑ के आंचल तले बेफिक्र,
निश्चिंत बच्चा देखे सपना है।
एक पल में लाड़ लड़ाए,
तो दूजे ही पल फिक्र करें,
माॅ॑ का दुलार समेटे,
प्यार, लाड़ और परवाह।
बचपन पल्लवित हो पुष्पित होता,
दुलार और माॅ॑ का गहरा है नाता।
बड़े होकर भी कहां अछूता रहता
माॅ॑ के प्यार को तरसे है आज भी मन!
