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' मेरी-लाड़ो '

' मेरी-लाड़ो '

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बिटिया! मन की बात बताऊँ
तुझे देख सब सुख पा जाऊँ।
तू जब रोयी, मैं भी  रोया-
तू मुस्काये -- मैं मुस्काऊँ।

तुम थी नन्ही राजकुमारी 
महकी खुशियों की फुलवारी ।
करतीं आँगन में ता-थैया
फुदके- नाचे जै्से गौरेया ।।


कभी  रूठना ,कभी रिझाना 
जीभ दिखाकर कभी  चिढ़ाना ।
और कभी खुद ही शरमा कर-
माँ के आँचल में छिप जाना।

अब तुम कुछ हो गयी सयानी
बाहर की दुनियाँ कुछ जानी।
पढ़ना - लिखना , सीखा तुमने
रीति-नीति,संस्कृति पहिचानी।

हम दोनों का तुम जीवन हो
कैसे कहें -- पराया-धन हो ।
दु:ख- चिंता सब छोड़ो-छाड़ो,
सदा रहो खुश , ' मेरी-लाडो  '।

 

 

 

 


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