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Ms Ishrat Jahan Noormohammed Khan

Abstract

5.0  

Ms Ishrat Jahan Noormohammed Khan

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मेरी जिंदगी

मेरी जिंदगी

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ज़िन्दगी कोई अहसान नहीं करती

बस इंसान को शैतान करती है

जख्मों को कुरेद कर आम करती है

ज़िन्दगी को मौत के नाम करती है


मासूमों को देती है दर्द

शैतानों की बनती है हमदर्द

रुक जा ए इंसान

इस भ्रम के दलदल से

निकलना जरूरी है


कहीं ऐसा न हो

दुनिया खत्म हो जाये

ओर तेरे शतरंज के मोहरे थम जाए

चार दिन की ज़िंदगी है


जी ले अहसान करके

धर्म पर न लड़

इज्जत पर न लड़

दहेज पर न लड़

बेमानी पर न लड़


मत चुका कीमत उस चीज की

जो तेरी नहीं है क्योंकि

जिसे तू पैसे दे रहा है

वो तिजोरी तेरी नहीं है


गरीबों के जख्म भर रहे हैं

अमीरों के मरहम बढ़ रहे हैं

 इस दुनिया में कोई किसी का

नहीं यही सच है

ओर जो सच है

उसका कोई नहीं होता


और जो झूठ है उसके पास काफिले होते हैं

मुखे जरूरत नहीं किसीके साथ कि

मुझे जरूरी नहीं किसी के औकात की

मुझे जरूरत नहीं किसी के जज्बात की

मुझे जरूरत नहीं किसी के ऐतबार की


क्योंकि में इन्सान हूँ कोई खिलौना नहीं

जिसे तुम खेल लो

जब खेल खत्म हो जाये

तब मुखौटा उतार कर कहे दो 


अब तुम मेरे कोई काम की नहीं

इस लिए इंसान अपने काम से कम रख 

ईमान से ईमान रख

छोड़ दे मुखौटे का साथ

ओर जी ले सिर्फ अपने जज्बात।


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