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SIJI GOPAL

Abstract

5.0  

SIJI GOPAL

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मेरी जिंदगी की रामायण

मेरी जिंदगी की रामायण

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मैं अपनी जिंदगी के रामायण की खुद ही सीता हूँ

अपनों के लिए मैं खुद अपनी अग्निप्ररीक्षा देती हूँ

अपने पवित्रता का सबूत बन भूमि में बस जाती हूँ

मैं अपनी जिंदगी के रामायण की खुद ही सीता हूँ


मैं अपनी जिंदगी के रामायण का खुद ही राम हूँ

अपने मर्यादा में बंध कर खुद को वनवास देता हूँ

अपने धर्म-अधर्म की लड़ाई खुद से ही लड़ता हूँ

मैं अपनी जिंदगी के रामायण का खुद ही राम हूँ


मैं अपनी जिंदगी के रामायण का खुद ही लक्ष्मण हूँ

अपने लिए रेखाएं बनाकर खुद को सीमित करता हूँ

अपनी ही संजीवनी बूटी से खुद को जीवित करता हूँ

मैं अपनी जिंदगी के रामायण का खुद ही लक्ष्मण हूँ


मैं अपनी जिंदगी के रामायण की खुद ही उर्मिला हूँ

अपने जीवनसाथी के इन्तजार में खुद को तड़पाती हूँ

उसकी नींद को वर्षों तक अपने सिरहाने लगाती हूँ

मैं अपनी जिंदगी के रामायण की खुद ही उर्मिला हूँ


मैं अपनी जिंदगी के रामायण का खुद ही दशरथ हूँ

मैं श्रवण हत्या जैसे पाप के लिए खुद को श्राप देता हूँ

मैं अपनों के वियोग में अपना प्राण तक त्याग देता हूँ

मैं अपनी जिंदगी के रामायण का खुद ही दशरथ हूँ


मैं अपनी जिंदगी के रामायण की खुद ही कैकयी हूँ

मैं अपने स्वार्थ में आकर अपने सौभाग्य से बैर लेती हूँ

मैं लाखों मंथराओं

की सुनकर अपनी मति फेर लेती हूँ

मैं अपनी जिंदगी के रामायण की खुद ही कैकयी हूँ


मैं अपनी जिंदगी के रामायण का खुद ही हनुमान हूँ

मैं अपने दिल में अपने आराध्य की तस्वीर उतरता हूँ

मैं अपने बाहूबल से पर्वत रूपी मंज़िल को उठाता हूँ

मैं अपनी जिंदगी के रामायण का खुद ही हनुमान हूँ


मैं अपनी जिंदगी के रामायण का खुद ही विभीषण हूँ

मैं न्याय की रक्षा के लिए खून के रिश्तों की बलि देता हूँ

मैं अपनों का राज़ खोलकर कभी उनको ही छल देता हूँ

मैं अपनी जिंदगी के रामायण का खुद ही विभीषण हूँ


मैं अपनी जिंदगी के रामायण की खुद ही शूर्पणखा हूँ

मैं सौंदर्य मोह में भ्रमित अपना सर्वनाश खुद कराती हूँ

मैं अपने अपमान के बदले राज्य को दाँव पर लगाती हूँ

मैं अपनी जिंदगी के रामायण की खुद ही शूर्पणखा हूँ


मैं अपनी जिंदगी के रामायण का खुद ही रावण हूँ

मैं अपने अंहकार से अपनी ही लंका को जलाता हूँ

मैं अपने दस चेहरे में अपना असली रूप छुपाता हूँ

मैं अपनी जिंदगी के रामायण का खुद ही रावण हूँ


मैं अपनी जिंदगी के रामायण का खुद ही वाल्मीकि हूँ

मैं क्रोंच पक्षी के विलाप में खुद को ही विचलित पाता हूँ

मैं खुद को डाकू रत्नाकर से कवि में रूपांतरित करता हूँ

मैं अपनी जिंदगी के रामायण का खुद ही वाल्मीकि हूँ


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