मेरी है पहचान यही
मेरी है पहचान यही
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मैं नारी हूँ।
हां मैं एक नारी हूँ।
हां मैं एक नारी हूँ ।।
प्रकृति ने दिन रात बनाए,
अंधकार और प्रकाश बनाए।
मैंने मानव के जीवन में,
मिटा कर अंधेरा दीप जलाए।
बीच जीवन के अंधियारों के,
मैं रोशनी तुम्हारी हूँ।
हां मैं एक नारी हूँ।।
हां मैं एक नारी हूँ।
खंडहरों में जीवन भर दूं,
जंगल को नंदन वन कर दूं।
श्वासों में स्पंदन भर दूं।
मानव मात्र के सुख हेतु मैं,
बारम्बार बलिहारी हूँ।
हां मैं एक नारी हूँ।
हां मैं एक नारी हूँ ।।
निशा पर विधु का रूप अलौकिक,
दिखाता मुझे अपनी शीतलता।
फिर सम्मुख मेरे शीतल मन के,
वह दिखता क्यों रीता-रीता।
ममत्व की शीतल आभा संग,
मैं मयंक पर भारी हूँ।
हां मैं एक नारी हूँ ।
हां मैं एक नारी हूँ ।।
जल सा शीतल है मेरा जीवन,
नीर सा नम मेरा अन्तर्मन।
शांत मैं जल के ठहरावों सी,
गंभीर मैं जल की गहराइयों सी।
जीवन सागर की भावुक लहरों पर,
हरदम करती सवारी हूँ।
हां मैं एक नारी हूँ ।
हां मैं एक नारी हूँ ।।
सूरज-चंदा, अवनि-अंबर,
जल-थल, महल हों या हों खंडहर।
प्रकृति की हर संरचना में,
मैं न कभी भी हारी हूँ।
मैं ईश्वर की इस सृष्टि की,
कृति सबसे ही प्यारी हूँ।
हां मैं एक नारी हूँ।
हां मैं एक नारी हूँ ।।