मेरी बनारस नगरी
मेरी बनारस नगरी
जहाँ की सुबह गंगा आरती से हई
जहाँ की रात गंगा पे खत़्म हुई
वहीं की वासी हूँ।
पैदा होके यहाँ पारस हुई।
खुशबू है पूड़ी-जलेबी-कचौड़ी की,
खनक है, सुबह-ए-बनारस की,
गूँज है गलियों में महादेव के नाम की
मंदिरों में पुजारी की।
वहीं की वासी हूँ,
पैदा होके यहाँ पारस हुई,
घाट किनारे बैठे इंतजार किया,
सुबह से रात हुई,
रात से फिर सुबह
शामें भी गुजर गई इस सती की,
महादेव के इंतजार मेंं।
खोज थी सीमित बनारस तक
महादेव की,
वहीं की वासी हूँ
पैदा होके यहाँ पारस हुई।।
