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Deeksha Bhatnagar

Romance

4  

Deeksha Bhatnagar

Romance

मेरे मन की आवाज़- युवराज!

मेरे मन की आवाज़- युवराज!

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कहने को तो बहुत कुछ है पर कुछ भी नहीं है,

लफ्ज़ तो बहुत हैं पर आवाज़ कहीं दब सी गई है।

तुम कहते हो मैं गलत हूं, झूठी हूं,

ज़रा सोचके तो देखो में कितनी दफा तुमसे रूठी हूं !


प्यार नहीं बचा तो नफरत भी तो मत करो,

इस तरह मेरी भावनाओं पर ये ज़ुल्म तो मत करो।

बड़ी शिद्दत से चाहा था तुमको,

ये चाहत अब भी बरकरार है,

मुझे तो अब भी बहुत है तुमपे,


तुम्हें क्यों नहीं मुझपे ऐतबार है।

बस एक आखरी बार भरोसा कर के तो देखो,

अपनी दीक्षा को फिर से जान के तो देखो।

अब भी सिर्फ खुदको पाओगे मुझमें,

कोई हकदार नहीं है इस दिल का,

सिर्फ तुम ही तुम बसे हो मेरे मन में।


सबके दिलों के राजा हो तुम - युवराज जो हो!

मैं तो सिर्फ तुम्हारी ही थी ना,थोड़ा ध्यान तो दो।

दिल का रिश्ता था हमारा,समझौते का तो नहीं,

तुमने ही तोड़ा है सब,भगवान की मर्ज़ी तो अब भी नहीं।


प्यार था सच्चा तो वापस झांको अपने दिल में,

हर जगह पाओगे खुद को मेरी बांहों में।


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