मेरे घर भी आ जाइए
मेरे घर भी आ जाइए
हे मेरे पूर्वजों -पितृों
इस समय पितृपक्ष चल रहा है,
आप सबको पता ही है
क्योंकि शोर भी बहुत है।
हर कोई तर्पण पिंडदान श्राद्ध कर रहा है,
मानसिक रूप से अपने पुरखों को याद कर रहा है।
उनके पूर्वज उनके घर आ रहे हैं
कौए के रूप में उनके श्राद्ध का भोजन खा रहे हैं
अपने वंशजों के कल्याण,
सुख समृद्धि का आशीर्वाद दे रहे हैं।
फिर आप मेरे घर क्यों नहीं आ रहे हैं
हमको क्यों रुला रहे हैं?
हम भी तो आपके वंशज हैं,
माना कि हम श्रवण कुमार नहीं है,
हमने आपकी सेवा नहीं की
आपका मान सम्मान नहीं किया
नित अपमान उपेक्षित किया
खून के आंसू रुलाएं
चैन से मरने भी नहीं दिया,
आपकी हर सीख की उपेक्षा की।
पर अब तो आप दूसरी दुनिया में हो
हम सबसे बहुत दूर हो
अब तो हम आपको अपमानित उपेक्षित नहीं करते
या कहें कर ही नहीं सकते
आप भी अब हमें भी कभी कुछ नहीं कहते?
पर अब आप हमारी उपेक्षा कर
आखिर क्या कहना चाहते हैं?
ये भी तो हमें नहीं बताते हैं।
शिकवा शिकायतों का दौर चलता ही रहेगा।
अब तो सब भूल जाइए
और मेरे क्या अपने घर फिर से आ जाइए
और जो भी मेरी व्यवस्था है
उसे अधिकार पूर्वक ग्रहण कीजिए
अपने बच्चों को आशीर्वाद दीजिए,
हमारे श्राद्ध भोज का तो सम्मान कीजिए।
आप हमारे बड़े बुजुर्ग, हमारे पुरखे हैं,
इसका तो मान रखा लीजिए
और हमारी भूल माफ कीजिए
और एक बार फिर पितृ रुप में
मेरे घर भी आ जाइए,
पितृपक्ष का तो सम्मान कीजिए,
अपने बेटे बहू का न सही तो
अपने नाती पोतों का तो ख्याल कीजिए
कम से कम इतना तो मान लीजिए
और हमारा कल्याण कीजिए।