मेरे दिल का कातिल
मेरे दिल का कातिल
ये सरदी का मौसम और ये ठंडी हवा,
ऐसा आलम मिलेगा फिर जाने कहां
जब धुंधला सा हो ये आसमान,
और कंप-कंपाते हुए हो दिल और जान
हाथों में मेरे हो बस उसका हाथ,
जो हर वक्त, हर पल देगा मेरा साथ
जिसकी सांसों की गर्मी मेरे रूह को छुए,
जिसके नज़रों में हो कईं बात अनकहे
उसके बातों से ये दुनिया हसीन लगे,
उसके बाहों में मेरे हर अरमान जगे
वो जो समझे मेरे हालात को,
और जान सके मेरे जज़्बात को
पहाड़ी के ऊपर या समंदर के किनारे,
साथ उसके देखूं मैं झिलमिल सितारे
जब महसूस होती है उसकी सांस,
जान जाती हूं के वो है कोई खास
रूबरू उसके चहरे से हो जाए,
तो इस दिल के सवालों के जवाब मिल जाए
उस शख्स ने है जीता मेरा दिल,
फिर भी क्यूं कहलाता है वो कातिल।

