मेरे अनमोल सपने
मेरे अनमोल सपने
वो साथ नहीं है मेरे
न जाने कब वो
मन की आँखों को बंद करके
पिंजरे को तोड़कर
इस भीड़भाड़ में खो गया
कैसे बताऊँ मैं उसका अस्तित्व
कैसे कहूं वो दिल के थे बहुत करीब
मेरी खोकली सी जिंदगी में
कभी ख़ुशी के पल बिता के चला जाता
कभी ठंडी हवन का झोंका दे जाता
कभी डरावनी रात में रुला जाता
मेरी पलकों को सुकून मिलता
जब वो देर तक बैठी रहती
किस्से पूछूं उसका पता
क्यों वो छोड़ का चली गयी
नन्हा ,कोमल आचरण था उसका
मेर हृदय की धड़कन
भय से बढ़ती जा रही थी
कोई उसे मचल न दे
कैसे पुकारों ,किस अधिकार से
बढ़ती उम्र के साथ शायद ये
रिश्ता भी कमजोर पड़ गया
प्यार का धागा टूट गया
पर अब शायद मैं हकदार नहीं
नहीं रहे वो मेरे अपने
आज की रात काली ,
मन तन्हा
पालक झपकी तो एक छोड़ पकड़ा
पर उसने मुझे पहचाना नहीं
बाहें छुड़ाके धूमिल चलती जा रही वो
मेरी सिसकियों में भर आयी दुआ
अमानत समझकर सौंप दिया मैंने
बुला रही उसे जो हसीं जिंदगी
सवार दे वो वही चंचलता भरी सादगी
क्योंकि वो है सच्चे पवित्र दिल के
मेरे अनमोल सपने।
