मेरा वो पत्थर
मेरा वो पत्थर
बस्ते में एक पत्थर था
रंगीन सा, अपना सा, सबसे प्यारा सा
मैं भागता रहा सोचा पत्थर ही तो है, जाएगा कहाँ?
पर वो पत्थर था मेरे लिए सबसे प्यारा
मैं फिर भी भागता रहा, सोचा पत्थर ही तो है वो भी मेरा, जाएगा कहां ?
भागते भागते कब रास्ता भटक गया, पता ही नहीं चला..
पर यकिन था कि पत्थर तो अब भी मेरे साथ ही था
आखिर पत्थर तो मेरा था, जाता भी कहां
मैं फिर भी भागता रहा
अचानक एक दिन बस्ता हल्का सा लगा, मैं डरा..
देखा तो वो पत्थर अब मेरे साथ नहीं था
भागते-भागते मेरा पत्थर कहीं गिर गया था शायद
मैंने खुब ढूंढा पर मेरा वो पत्थर कहीं नहीं मिला
शायद तेज़ बारिश उसे बहा ले गई, या?
तब मौसम भी कितना खराब था ना...
एक दिन चलते चलते मैं एक पत्थर से टकरा गिरा
मैं मुड़ा, देखा, कहीं ये वहीं मेरा पत्थर तो नहीं!
पर वो पत्थर मेरा नहीं था...
अगर होता तो मुझे उसने गिराया न होता…
तब लगा शायद
मैंने अपना पत्थर हमेशा के लिए खो दिया है...