मेरा गांव
मेरा गांव
मिट्टी की खुशबू पीपल की छांव,
सपनों सा प्यारा वो मेरा गांव,
घने घने जंगल वन बाग बगीचे,
खेलते थे जब हम बरगद के नीचे,
ठंडी हवा के झोंकों का संगम,
भा गया मन को गांव का ये जीवन,
कच्चे कच्चे रास्तों में मिट्टी का उड़ना,
खेतों में जैसे उगता था सोना,
गौशाला में जाकर गाय को दुहना,
मथनी को लेकर मट्ठे को मथना,
मक्खन की खुशबू दही की हांडी,
सपनों सी प्यारी वो गांव की माटी,
गांव के वो मेले सावन के झूले,
खेतों में खिलते सरसों सुनहले,
नदी किनारे पर जाकर ऊधम मचाना,
आम के बगीचों से आम चुराना,
मुर्गे के बोलने से होता था सवेरा,
कोयल के स्वर से भाग जाता अंधेरा,
सूरज को देख तारे जाते थे भाग,
कहां होगा गांव जैसा नीला आकाश,
शाम होते ही सब पीपल के नीचे आते,
कोई ढोल बजाता कोई गाने गाते,
जानवर भी सारे हो जाते थे मौन,
सुनते थे सब राम सीता थे कौन,
दादा जी सबको कहानी सुनाते,
गर्व से भारत का इतिहास बताते,
रहती थी रौनक धूप हो या छांव,
सपनों से प्यारा वो मेरा गांव।