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Khanak upadhyay

Abstract

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Khanak upadhyay

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मेरा अस्तित्व..

मेरा अस्तित्व..

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मेरा अस्तित्व

या मेरा प्रतिबिम्ब

या मेरा लिंग या मेरा अंग

या मेरा शरीर या मेरा अंतर्मन


या मेरे विचार या मेरी सुंदरता

या मेरे वस्त्र या मेरी खूशबु

काश! ये शब्द इतने गिरहों में ना उलझा होता ,

क्या है मेरा अस्तित्व ?


किससे है मेरा अस्तित्व ?

यह सवाल मेरा खुद से हैं।

अब समाज के जवाब

मुझे तानें लगते हैं

मेरी ख्वाहिशों को वह

बेड़ियों में बाँधना चाहते हैं।


क्या मेरी माँ की सीख कम थी ?

जो ये मुझे मेरी मर्यादा बताया करते हैं,

ये समाज क्यों मेरे अस्तित्व को अपनी

सोच तले कुचलने की कोशिश कर रहा है ?

यह मेरा संघर्ष हैं।


हाँ ! मैं संवेदनशील हूँ,

पर मैं निर्बल नहीं।

हाँ ! मेरे बदन पर चोट के निशान हैं,

पर मैंने अभी हिम्मत हारी नहीं।


ना मुझसे कोई दो गज ज़मीन छीन सकता हैं

ना मेरे हिस्से की साँसें 

हाँ ! मैं इतनी मज़बूत हूँ।


© khanak upadhyay


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