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SHASHANK KUMAR SINGH

Drama Action Inspirational

4  

SHASHANK KUMAR SINGH

Drama Action Inspirational

मेंटल पीस

मेंटल पीस

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279


क्यूँ जिंदगी फिर से, 

उथल-पुथल है क्या ?

क्यूँ जिंदगी जो पूछने लगी है,

सवाल फिर से, 

उसका तेरे पास कोई हल है क्या ? 


क्यूँ Happpiness/Love/Faith,

सब तू खो रह है क्या ?

अपने हाथों की रेखाओं को,

अपने ही हाथों से धो रहा है क्या ?


हां, हां !

चल रही केवल मेरी सासे,

बढ़ने लगी है दिल की धड़कने,

कदम लगे है दर-बदर भटकने,

बढ़ती जा रही हैं मन की अटकने,

फिर से लगा हूं, 

आसमान से गिर के,

खजूर पर लटकने।


करने लगा हूँ Mental Peace की तलाश, 

बनके ज़िंदा लाश,

आने लगे है मुंह पर “कर देता कुछ काश”

सुखने लगा है मेरा गला,

बढ़ने लगी है मन की प्यास, 

जिसको मन करता,

वो ले लेता मेरा क्लास,

 

करने लगा हूं सब को बरदास,

ना कोई अब विकास है,

आस है,

अभिलास है,

और नाही किसी पर विश्वास है, 

मन हतास है,


रहता उदास, 

सब हो रहा नास, 

दिमाग भी लगा है भरने, 

कूड़ा-कर्कट और घास,

बहला देला था दिल ये मेरा, 

अब ये भी ना रहा मेरे पास, 

बदल रहे है मेरे रंग-रूप-लिबास, 

बदलने लगे हैं मेरे रास,


भूल रहा हूँ अपने अभ्यास,

अब कोई ना कहता “Wow बेटा ! शाबास”,

था तो नहीं मैं अय्यियास,

लेकिन बनने के होने लगा है आभास,

बन कर रह गया हूं,

खुद से सजायीे गलियों का बदमाश, 

ना जाने क्यूँ अब तकते रहता हूं,


ये नदी, समंदर, ये खुला आकाश,

मन भी dm करने लगा है,

Messages मुझे पच्चास,

ना कोई काम है 

ना ही लोग मेरे आस-पास, 

हर दिन लगने लगा हैं,

Rainy Day वाली अवकाश l


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