मचलते मचलते
मचलते मचलते
मचलते मचलते हवा चल पड़ी है
हवा क्या चली,कामना चल पड़ी है
वो ठहरी रही,बन्द आंखों में कब से
इशारा मिला और पलक उठ पड़ी है
किताबों में थे ,जिंदगी के ही किस्से
नजर क्या मिली, जिंदगी चल पड़ी है
ये मौसम भी माना नहीं कुछ बिना तुम
तुम आये तो बिगड़ी,बनी चल पड़ी है
चलो कामना के सँवरने के दिन हैं
समुन्दर से मिलने नदी चल पड़ी है।