मौत एक इत्तफाक
मौत एक इत्तफाक
ये मौत भी एक अजीब इत्तफाक है
जो अचानक रूठ जाती है ज़िन्दगी से एक दिन
फिर सबको पीछे छोड़ हमें अपने साथ ले जाती एक दिन
जिनके साथ सारी उम्र गुजारी इन रिश्तों को मोड़ ले जाती है एक दिन
जिसके लिए जीना चाहा इस सपने को तोड़ ले जाती है एक दिन
ये मौत भी अजीब इत्तफाक है जो रूठ जाती है ज़िन्दगी से एक दिन
जिसके लिए जीना था उस हमउम्र से दूर क्यों ले जाती है एक दिन
जिसके आंचल मैं महफूज रहा उस मां के आंचल को
जला मुझे क्यों ले जाती है एक दिन
जिन दीवारों पर खूब लिखा उन दीवारों को कोरा छोड़
मुझे क्यों ले जाती है एक दिन
ये मौत भी अजीब इत्तफाक है जो रूठ जाती है एक दिन
जिन हाथों ने चलना सिखाया उन हाथों को
क्यों कांपता छोड़ जाती है एक दिन
जिस उम्र में मुस्कुराती है ज़िन्दगी उस उम्र में
मुझे रोता क्यों छोड़ जाती है एक दिन
जिन आंखों ने चमकते सपने देखे उन आंखों में
अंधेरे आँसुओं की बरसात देकर क्यों चली जाती है एक दिन
ये मौत ज़िन्दगी से अचानक क्यों रूठ जाती है एक दिन
मेरे सीने मैं बसे कुछ राज़ों को छोड़ मुझे
अपने साथ क्यों ले जाती है एक दिन
मेरी ख़ुशियों को दफन कर सब को गम के तले
दबे क्यों छोड़ जाती है एक दिन
उन रंगीन गलियों को बेरंग छोड़ क्यों चली जाती है एक दिन
मेरी सांसों से मेरा सौदा कर ये ज़िन्दगी क्यों चली जाती है एक दिन
ये मौत क्यों ज़िन्दगी से रूठ जाती है एक दिन
