STORYMIRROR

tm gan

Abstract

4  

tm gan

Abstract

मौसम और तुम

मौसम और तुम

1 min
373

मौसम से तेरा ये अजीब अपनापन है

मेरी तन्हाइयों के बादल तो अक्सर आते हैं

आंधीयों में तेरी यादों के धूल उर्तें हैं

तपती ज़मीन तेरा ही छाओं ढूंढती हैं


मौसम से तेरा ये कैसा अपनापन है

बारिश की सोंधी खुशबू तेरा अहसास कराती है

सूरज को ढकती काली चादर बीते शामों जैसी लगती हैं

धुंधला चांद कभी तेरे साथ वो भीगना याद दिलाती है


हवा से तरप्ती लॉ तेरा इंतजार याद दिलाती है

आषाढ़ के हिय में सावन की दस्तक

मेरी विरह वेदना लगती हैं

दरिचे पे खड़ी अक्सर सोचती हुं


मौसम से तेरा ये कैसा अपनापन है

तपती धूप में दिशाहीन चलना है

पलकों से झांकती कुछ गीली तमनाएं है

और शून्य को ताकती यह सूखी आंखें हैं


दरीचे पे खड़ी सोचती हूं

कभी सावन की कुछ बूंदें इन आंखों से भी गिरे।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract