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Antariksha Saha

Abstract

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Antariksha Saha

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मौला

मौला

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साद और बर्बाद भी हुआ मौला

प्यार भी किया नफरत भी किया मौला


गुनाह भी किया मौला

शफा भी किया


अंत में रुका जहा तोह पिटारा खाली था

जो कमाया वोह रह गया मौला


तू कहीं भी नहीं दिखा मौला

बस लोग थे गिने चुने


हर बंदे मैं तेरा अक्स है शायद

और मैं मन्दिर मस्जिद तुझे छानता फिरा


काश कुछ पल होते कुफरत के होते

कुछ लोगों का भला भी हम करते


मौत के बाद का पता नहीं

कुछ लोगों के चेहरे की मुस्कान की वजह बनते।


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