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Meena Mallavarapu

Abstract Inspirational

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Meena Mallavarapu

Abstract Inspirational

मैं....

मैं....

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सात दशक पर पांच - जानती हूं मैं

कितना देखा, कितना जाना

कितना पाया कितना खोया

कितना पा न सकी- जानती हूं मैं


मगर एक एक,हर एक अनुभव 

मुझे ढालता गया - हर अनुभव 

गढ़ता गया,जोड़ता गया एक नया मैं

आज जो भी हूं ,जैसी भी हूं

उसी की बदौलत ही तो हूं

मगर हूं अचंभित , हूं अभिभूत मैं


कि मैं जो बचपन में थी

मेरी सहज प्रकृति,प्रवृत्ति 

आज भी नहीं बदली, हैरान हूं मैं

बहुत कुछ है बदल गया 

>

मगर इतना तो समझ गया

यह मन कि उस'मैं' की छवि हूं मैं


या यह भी तो हो सकता है

इस 'मैं' की छवि दिखा सकता है

बचपन भी अपना - दर्पण में 'मैं'

देख हुई निस्तब्ध , निःशब्द 

सच है या है यह सपना मैं गद्गगद 

बचपन की तो अनमोल देन है यह 'मैं'


जीवन का हर लम्हा समेट लेगा 

कुछ भी नहीं छोड़ेगा

चाहें न चाहें जुड़े हैं बचपन और 'मैं'


जब तक है यह सांस, यह स्पंदन 

तब तक तो है ही यह गठबन्धन।


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