मैं तुम्हारी राह पर।
मैं तुम्हारी राह पर।
चल पड़ा हूं गुनगुनाता गीत तेरी राह पर।
दर्द पीता चल रहा था, तुम दवा बन आ गए।
घूँट दोनो जून पीते, जिंदगी में छा गए।
हम सफर बनकर मिले थे तुम जहां जिस मोड़ पर-
चल पड़ी है जिंदगी उस ठाँव से एक राह पर।
कौन जाने, पर बताते हो तुम्ही अपना पता।
जान कर भी हम अनजाने भटकते हैं सर्वदा।
है करोड़ों सूर्य से भी ज्योति तेरी सौ गुनी-
पर जला कर ढूँढता हूँ, दीप तेरी राह पर।
लोग हँसते हैं मगर, परवाह मुझ को है नहीं।
लोग देखें या न देखें, दूर मुझसे तुम नहीं।
गुनगुनाते हो सदा इस वीणा की झंकार पर
क्या न सुनता मैं तुम्हारी रागिनी इस राह पर।
दर्द लेकर दर्द देना यह तुम्हारा काम है।
आंसूओं में मुस्कुराना यह तुम्हारी बान है।
पार करते हो नहीं यह बात अब तक ना सुनी-
थामते हो बाँह जिसकी तुम सदा इस राह पर।
एक था दिल सौंप तुम को, मैं तुम्हारा हो गया।
रूप -रस की माधुरी पीकर तुम्हीं में खो गया।
चाह कर भी अब कभी मुझ को भुला सकते नहीं
जब तलक चलता रहूँगा मैं तुम्हारी राह पर।
है न चिंता नाथ मेरी गांठ तुमसे लग गई।
थाम लेना बाँह मेरी, राह से जो गिर गया।
लाज मेरी लुट गई तो लाज तेरी भी गई-
जो फिसल कर जा गिरी, इस राह से उस राह पर।
