मैं सागर तू नदिया होती
मैं सागर तू नदिया होती
मानती हो अगर मुझको अपना सागर
तो नदी बनके मेरी तरफ बहना होगा
मानती हो यदि स्वयं को मेरी शक्ति
तो सती बन मेरे लिए लडना होगा
मेरे अधरो पर रख अपने अधर.
मेरे जीवन का पूर्ण विष पीना होगा.
मेरी हर ज्वाला को मेरे हर ताप को.
मन में बसे हर संताप को
अपने शीश धरे गंगा जल से
तुमको ही शीतल करना होगा
रिक्त पड़े इस हृदय के हर कोने को
बस अपने प्रेम से भरना होगा
मानती हो अगर मुझको अपना सागर
तो नदी बन मेरी तरफ बहना होगा
अगर मैं सागर तू नदियाँ होती
तुझको मेरी तरफ बहना ही होता
तोड़ के सारी कुप्रथाएं
तुझको मुझमे घुलना ही होगा
कुमार का है संकल्प यही कि
नदिया को सागर में मिलना होगा।