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Anil Sharma

Abstract

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Anil Sharma

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मैं फिर सो जाऊंगा

मैं फिर सो जाऊंगा

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बचपन वाली नींद ना जाने

अब क्यों नहीं आती है,

आने वाले कल की भी फिक्र न,

अब हर पल घड़ी इतराती है,

उस वक्त में वापस मैं जा ना सकूँ,

इस वक़्त से उलझ मैं पाऊँगा,

जब घड़ी देगी पीछा छोड़ मेरा, 

मैं फिर सो जाऊंगा।


कुछ काम पड़े है बाकी,

कुछ लम्हे भी उधार है, 

रुक के ना थाह ले सकूँ,

यूँ जिंदगी की रफ्तार है,

एक इस पल को बचाने में,

ना वक़्त और खो पाऊंगा,

बस ये लम्हा और जी लूं,

मैं फिर सो जाऊंगा।


पा कर एक मकां,

फिर और इक बनाना है,

सम्पूर्ण करूँ या त्रुटिहीन,

ये मुश्किल ताना- बाना है,

उधेड़ बुन में ही सुलझ जाए,

बस सफल में होऊंगा,

इक गांठ और सुलझा लूं बस

मैं फिर सो जाऊंगा।


इक पल खुशी का जी लूं जो,

सफर की रात बड़ी आ जाती है,

सफर खत्म होने की उम्मीद जगे तो,

सुबह नए-नित मुकाम लाती है,

इस सफर - मंज़िल की दौड़ में,

ना जाने कब आराम पाऊंगा,

कुछ कदम चल लूँ बस, 

मैं फिर सो जाऊंगा।


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