ग्लूटिन फ़्री होना
ग्लूटिन फ़्री होना
कुछ नाते-रिश्तें निभाते चले गए,
आगाह किया - बेफिक्र थे, सो बिसराते चले गए।
कुछ ऐसी कहानी मेरे खाने से भी जुड़ी निकली,
थे जहाँ रोटी, बिस्कुट, परांठे और नान-मखमली।
मौके पे मिला धोखा, यूँ हमसफ़र - सा वो सख्श निकला,
जैसे बचपन सा प्यारा गेहूं, सिलियक निकला।
मुश्किल है जिंदगी के रिश्तों का मुकम्मल रहना,
जैसे गेहूं के बीच रहकर ग्लूटिन फ़्री होना।
जैसे गेहूं के बीच रहकर ग्लूटिन फ़्री होना !
