मैं लेखक हूँ..
मैं लेखक हूँ..


मैं लेखक हूँ,लिखता हूँ।
अपनी तो कभी दूजे की कहता हूँ।
दिल में दर्द भले हो कितना,
पर जुबां से नहीं कुछ कहता हूँ।
मैं तो जीवन के कोरे कागज पर,
भावों कों अपने रंग देता हूँ।
कलम ले ली जो हाथ में अपने,
संभव को असंभव कर देता हूँ।
सुधबुध रहती नहीं कोई अपनी,
बस ख्यालों में खोया रहता हूँ।
दुनिया समझे पागल दीवाना मुझको,
मैं ख्वाब कोई नया संजोया रहता हूँ।
नई दिशा दे सकूँ समाज को,
सतत प्रयास करता रहता हूँ।
संस्कृति,संस्कारों से परिचित हों सब,
नित नए सृजन रचता रहता हूँ।
मरते हैं यहाँ सभी जग में,
पर मैं कभी नहीं मरता हूँ।
अपने लेखन के रूप में,
दिलों में सदा जिंदा रहता हूँ।