मैं क्यों खुद को बांध लूं
मैं क्यों खुद को बांध लूं


मैं तो मैं हूं,
मैं औरों जैसे क्यों बनूं।
क्यों किसी से तुलना करूँ,
माना के इतनी खूबसूरत नहीं,
मुझ में है बहुत सी कमी,
पर मैं किसी से क्यों जलूं,
मैं औरों जैसे क्यों बनूं।
मैं जैसी भी हूं अच्छी हूं,
माना की अक्ल की थोड़ी कच्ची हूं,
मुझ में है बहुत सी नादानियाँ
बड़ी हो चुकी हूं ....
पर, अभी भी बच्ची हूं।
कुछ भी ना मेरे भीतर छुपा,
जो भी था निकाल दिया,
खुशी मिली तो हँसकर जी,
ग़म मिला तो मुस्कुरा दिया ,
कभी रो दी कभी हँस लिया,
ऐसी मैंने खुद को बयान किया,
यह भी नहीं कि समझ नहीं मुझे में,
यह भी नहीं कि बहुत समझदार हूं,
नहीं मेरी तुलना किसी से
मैं खुद को औरों सी क्यों करूं
मैं औरों जैसे क्यों बनूं।
जो भी आया कुछ सिखाने आया,
शायद मुझ अनपढ़ को पढ़ाने आया,
नहीं पढ़ना अब मुझे किसी से,
सब कुछ तो सीख लिया जिंदगी से,
क्यों मैं औरों के मुताबिक चलूं
मैं औरों जैसे क्यों बनूं।
मेरे भी हैं कुछ अरमान,
मुझे भी भरनी है उड़ान,
देकर पंख अपने सपनों को,
पाना है अपनी मंज़िल को,
खुद को खुद में कैद क्यूँ करूं
मैं औरों जैसे क्यों बनूं