मैं कवि नहीं
मैं कवि नहीं
मैं कवि नहीं औरों के शब्द हूँ,
पर देख काल की माया मैं खुद ही स्तब्ध हूँ।
मैं कवि नहीं मैं शब्दों की माया हूँ,
परिवर्तन को पनपती हुई एक छाया हूँ।
मैं कवि नहीं मैं एक बुलंद आवाज़ हूँ,
सच्चाई को छूने आकाश में उड़ता एक परवाज़ हूँ।
मैं कवि नहीं मैं मात्र एक आस हूँ,
बदलाव को समर्पित मैं एक प्रयास हूँ।
अरे मैं कवि नहीं मैं एक सच्चाई हूँ,
झूठ को चुभती हुई मैं एक परछाई हूँ।
