मैं कोई और हूँ !
मैं कोई और हूँ !
मैं कोई और हूँ !
कौन हूँ ?
मैं ख़ुद नहीं जानता
या शायद जानता हूँ
रहता हूँ इस खोखली दुनियाँ में
दिखावे की चादर ओढ़े
नकली मुस्कान चेहरे पर चिपकाएं
समझौतों से दोस्ती कर
सपनो का गला दबाए
नौ से पांच की नौकरी
गले में टाई लटकाए
ज़िन्दगी की रेस में बेतहाशा भागता
ना पहले
और ना आख़िरी
बस भीड़ में खोकर रह जाता
एकदम आम सा हूँ मैं
पर बहुत कुछ खास है मुझमे
क्या ख़ास है ?
मैं ख़ुद नहीं जानता
या शायद जानता हूँ
पर मैं नहीं जानता
जिसे मैं जानता हूँ
वो तो कोई और है
और मैं ?
मैं कोई और हूँ।