मैं कभी एक घर था
मैं कभी एक घर था
मे कभी एक घर था, आज एक खंडर हु,
यादो मे उल्झा हुआ, सिर्फ एक बवंदर हु।
दादा ने मुझे बनाया, बेटे ने सीचा था,
सामने एक व्हरांडा और छोटा सा बगीचा था।
बगीचा सुखं गया,और दादा का पोता भी
किस्सी दुर जहान है।
एक माँ ने मुझे मकान से घर बनया,
बहू ने समजदारी भरी, बच्चो ने नादान शेतानी।
माँ और बहू कही खो गये है,
और बच्चे तो अब बडे हो गये है।
मैने दिवाली देखी, और देखा है मातम भी,
देखी है कडी धूप, और बरस्ता पानी भी।
धूप भी गयी, पानी भी सुखं गया,
रंग बदले मौसम ने भी कयी।
कही मशिनो कि आवाझ आ राही है,
कही क्रेन झूल रहे है, कही ट्रक दौड रहे है।
शेहेर कि सुरत जैसे बदल रहे है,
उमीद कि येही किरण दिखा रहे है।
कि कभी मे एक खंडर था, अब फिर एक घर बनूँगा !
मे कभी एक घर था, आज एक खंडर हु।