मैं कौन हूं ?
मैं कौन हूं ?
मैं कौन हूं ?
मैं खूद नहीं जानता,
मैं कौन हूं ?
बस एक आइना हूं,
जिसे मैं पहचानता,
जब भी देखो खुद के
अंदर सच बोलने का
साहस हूं मैं रखता,
क्योंकि मैं
एक आईना हूं
सच ही दिखलाता।
अपने अहम को तोड़कर
मैं एक अच्छा इंसान
बनना चाहता हूं ,
क्योंकि मैं
एक आईना हूं
किसी की आंख में
आए हुए आंसुओं को,
पहचान लेता,
दर्द-ए-ग़म सहकर
भी होठों पर अपनी
मुस्कान रखता।
नहीं किसी से जलता,
ना कुढ़ता हूं,
मैं अपने आपे में
ही रहता,
ना किसी से कोई
शिकायत
ना कुछ बोलता।
जिसका जैसा चेहरा
होता है
वह मैं उनके सामने
पेश कर देता।
क्योंकि मैं
एक आईना हूं
जो भी होता मेरे सामने
मैं साफ बोल देता हूं।