मैं जो पहुंचा अपनी मंजिल पर
मैं जो पहुंचा अपनी मंजिल पर
सूरज को निगलना है
आसमान को छूना है
पहाड़ पर चढ़ना है
उसकी चोटी पर पहुंचकर
आकाश के शिखर को छूना है
बादल सा बनकर ही
स्वच्छंद
एक विस्तृत आकाश में
पंख फैलाकर
खुद के ही हौसले से
एक अनंत यात्रा पर निकलकर
अपनी एक सुंदर सपनों की मंजिल को
पाना है
यह सब कर पाने के लिए पर
दिन प्रतिदिन छोटे छोटे यत्न,
प्रयत्न और प्रयास भी करने हैं
कुछ भी इस जीवन में
किसी मनुष्य के लिए
असंभव नहीं
यह साबित करना है
यह यात्रा मीलों है लंबी पर
पग पग चलने से हर रोज
एक दिन पूरी तो अवश्य होगी
सामने खड़ी होगी
जब मेरे
मेरी मंजिल तो
आंखों में आंसू और
लबों पर मुस्कान
एक हिरण की तरह
कुलांचे भरती
दौड़ तो रही होगी
किसी लक्ष्य को हासिल
करने के लिए
दिन रात मेहनत करनी
पड़ती है
उससे ध्यान नहीं हटाना होता
अपनी तरकश से निकालकर
तीर
अपने लक्ष्य पर ही साधना होता है
जरा सा विचलित हुए
डगमगाये या
हौसला हारे तो
जितने कदम अपने लक्ष्य की ओर
आगे बढ़े होते हो
उससे कई गुना अधिक कदम
पीछे हो जाते हो
धीरे धीरे
आहिस्ता बढ़ो पर
रोज प्रयत्न करो और
अपने लक्ष्य
अपनी मंजिल की तरफ बढ़ो
पा लो एक रोज जो
अपनी मंजिल तो यह न
समझो कि बस
जीवन में जो
हासिल करना था
वह पा तो लिया
बस अब यही रुक जाओ
यहीं थम जाओ
अपनी यात्रा का अंत यहीं करो
ऐसा कभी न सोचो
कभी न करो
यह तो एक मंजिल
पाने की खुशी है
अभी तो न जाने और
कितने सपने हैं जो
देखने हैं और
पूरे करने हैं
न जाने कितने रास्ते
कितने पड़ाव पार करने हैं
न जाने कितनी मंजिलों की
तरफ कदम बढ़ाते
उन्हें एक एक करके पाते चले
जाना है
मंजिल अपनी तरफ
आते देखकर मुझे
यह तो कहे कि
उसका इंतजार खत्म हुआ
मैं जो पहुंचा अपनी मंजिल पर
उसका अपनी मंजिल को पाने का ख्वाब भी
पूरा हुआ।
