मैं हूँ गरीब
मैं हूँ गरीब
मैं हूँ गरीब,मैं हूँ निढाल
मेरा देखो है बुरा हाल
धरती मेरा बिस्तर है
नभ मेरा चादर है
भूखा-प्यासा बैठा हूँ
दुनिया की रौनक को तकता हूँ
कब मैं चमकूंगा रब से
मेरा यही सवाल
मैं हूँ...................
सूख गया हूँ छुआरों सा
गालों में झुर्रियां पड़ गईं
ढांचा बन गया हड्डियों सा
लगता है दधीचि का बज्र बनीं
एक बूंद के खातिर अब
बन गया मैं पूरा कंकाल
मैं हूँ........
है मेरे प्रभु अब मुझ पर कर दे दया
मैं हूँ अकिंचन,असहाय बहुत
मुझे अपना सहारा दे दे जरा
तूने गर मुझको संवारा नहीं
मैं बना रहूँगा कंगाल
मैं हूँ गरीब.....
