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संजय कुमार

Abstract

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संजय कुमार

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मैं हूं एक पवन का झोंका

मैं हूं एक पवन का झोंका

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मैं तो हूं एक पवन का झोंका

जिसने भी मुझको है रोका

चैन से नहीं कभी वो सोता

याद में मेरी दिन रात है रोता

मैं तो हूं एक पवन का झोंका।

जिधर चाहूं उस ओर मैं जाऊं

इधर जाऊं उधर से जाऊं

नहीं पता किस और से जाऊं

जाऊं मैं चाहे जिधर से जाऊं

ऐसा मैं कुछ आभास दिलाऊं

हर जीवों को आराम दिलाऊं।

मैं तो हूं एक पवन का झोंका।


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