मैं हूँ एक कुम्हार
मैं हूँ एक कुम्हार
तू भी एक रचयिता है प्रभु, मैं भी एक रचयिता।
तू जग का निर्माता है, मैं कुंभकार छोटा सा।
मिट्टी से मैंने भी कितने रूपों को साकार किया।
घड़े सुराही दीये बनाए, ईश्वर को आकार दिया।
माटी के ये घड़े सुराही, जल को शीतल करते।
छोटे बड़े दीप, अंधियारों में रोशनी करते।
माटी के गमले, घर की सुन्दरता खूब बढ़ाते।
रंग बिरंगे पुष्पों से लद, घर आँगन महकाते
कितने देवी देवताओं की मैंने मूर्ति बनाईं।
बड़े चाव से लोगों ने देवालयों में लगवाईं।
नित- नित तुमको भोग लगाते, नित पूजा करते हैं।
श्रद्धाभाव से शीश नवा, मन्नत माँगा करते हैं।
तूने जो पुतले बनाए, वे रोज रोज ही लड़ते।
मैंने जो पुतले बनाए, आपस में नहीं झगड़ते।
तू जग का निर्माता है, सृष्टि का तारनहार,
माटी से कुछ गढ़ लेता प्रभु, मैं हूँ एक कुम्हार।