मैं एक नारी हूं
मैं एक नारी हूं
मैं मां -बहन -बेटी -पत्नी,
चाची- नानी- दादी हूं।
जनक की जानकी,
कृष्ण की सुभद्रा हूं।
मैं घर की फुलवारी,
मैं ज्वाला- ज्योति हूं।
डोली –घुंघट बाप की पगड़ी,
ईश्वर की अनुपम अभिव्यक्ति हूं।
मैं सहन-शक्ति की सीमा,
गौरव और प्रतिष्ठा हूं।
पुरुषों पर सदा रही भारी,
मैं एक नारी हूं।
मैं मंदोदरी, गांधारी, पंचाली,
देवकी यशोद कौसल्या हूँ।
सिंदूर के लिए काल से टकराई,
मैं अनसुइया, सावित्री हूं।
मान –मर्यादा के लिए,
जौहर होकर दिखलाई हूं।
मैं दुर्गा -अन्नपूर्णा -काली,
मैं क्षत्राणी –इंद्रानी हूं।
प्रेम की प्रतिमूर्ति,
राधा, मीरा, रुक्मिणी हूँ
प्यार में पागल बनी,
मैं लैला, हीर, सिरी हूं।
गार्गी, मैत्री, अपाला,
मैं रजिया सुल्ताना हूं।
मुझमें कुसुम की कोमलता,
मेनका, रंभा, उर्वशी हूं।
मैं ईश्वर की अनुपम कृति,
मैं ही महा-प्रकृति हूं।
मैं एक नारी हूं।
पर्वत को लांघ डाली,
अंतरिक्ष तक जा पहुंची हूं।
सिर्फ नदी, सरिता, पनघट नहीं,
पूरा के पूरा समंदर हूं।
एक पैर जमीन पर,
दूजा आसमान पर रखती हूँ।
बछेंद्री पाल, कल्पना चावला,
मैं ही सुनीता विलियम हूं।
सरोजिनी नायडू, कस्तूरबा गांधी,
मैं झांसी की रानी हूं।
कमजोरियों को शक्ति बना लेती,
उन्नति की सीढ़ी हूं।
संपूर्ण वस्तुओं के मूल में,
मैं ही मैं समाई हूं।
धर्म –संस्कृति की रक्षिका,
परंपरा- संस्कार निभाती हूँ।
लाज- पर्दा –मर्यादा मुझसे,
रिश्तो को सम्भाले रखती हूं।
जीवन के भीषण तूफान में,
बंदरगाह बन जाती हूं।
मैं एक नारी हूं।
देवता भी वही रहते,
जहां मैं निवास करती हूं।
जितना मुझे सताया जाता,
उतना ही रंग लाती हूं।
मैं खुशरंग हिना,
सोलह शृंगार हूं।
मैं एक नारी हूं।
नापाक इरादों के लिए,
मैं संघारक बन जाती हूं।
मैं तलवार, कटारी,
मैं ही चंडिका हूं।
मैं एक नारी हूं।
ऐसी कोई जगह नहीं,
जहां ना मैं पहुंची हूं।
कुर्बानी की अथाह सीमा,
मैं पन्ना धाय हूं।
मातृत्व शक्ति की परिचायक हूं,
मैं एक नारी हूं।
स्नेह, ममता की रसधार,
मैं मदर टेरेसा हूं।
भोग्या समझने की भूल न करना,
मैं सदा पूजनीया हूं।
इंसानों की औकात ही क्या,
ईश्वर को भी पाली हूं
मैं एक नारी हूं।