"मैं चलती रहूंगी"
"मैं चलती रहूंगी"
"मैं चलती रहूंगी"
मैं टूटी तो कई बार, मगर बिखरी नहीं,
आँखों में अश्क थे, पर मैं कभी ठहरी नहीं।
लोग आए, दिए ज़ख़्म और चल दिए,
पर मैंने खुद से जख्मों की मरहम सिल दी।
हर मोड़ पर किसी ने कहा —
"अब तो थक गई होगी तू…"
मुस्कुरा के मैंने जवाब दिया —
"हाँ, थकी हूँ… लेकिन रुकी नहीं हूँ…"
रिश्तों ने जब खंजर चलाए पीछे से,
मैंने पीठ पर नहीं, दिल पर ढाल बना ली।
भरोसे जब ज़मीन में दफन हो गए,
मैंने अपने हौसलों से ही नई दुनिया बसा ली।
मैं दर्द में भी मुस्कुराना सीख गई,
अंधेरे में भी खुद को पहचानना सीख गई।
अब जो भी आएगा मेरी ज़िंदगी में,
उसे मेरी शर्तों पर साथ निभाना होगा।
क्योंकि मैं अब वो लड़की नहीं…
जो रो कर किसी को बुलाए…
मैं अब वो हूं जो खुद चलती है,
और अपनी दुनिया रोशन कर आए।
By priya silak ✍️ ✍️
