मैं चिरैया आपने पिता की !
मैं चिरैया आपने पिता की !
मैं चिरैया अपने पिता की
कुछ बड़ी हुई लगी गुड़ियों संग खेलने !
मां की चाहत चिरैया भी
दो अक्षर पढ़ा लिखना सीख ले।
ना रह जाये उस जैसी अंगुठा .छाप
मंजूर नहीं था पिता जी को
हो उस को भी अक्षर ज्ञान
बोले क्या करेगी पढ़ लिख कर
करना तो है घर का काम।
जब आया भाई जीवन में
उस के लिए पिता को उमंग थी
बेटा पढ़ लिख कर बने कलैक्टर !
करेगा हमारा नाम रोशन।
नयी पस्तकें, नयी पोशाक
भाई जाने लगा पाठशाला
चिरैया भी उस संग बैठ
लगी पढ़ने, लिखने।
जो वो पढ़ती सब
रह जाते हैरान
सब सबक याद कर लेती
समय न लगाता।
मां ने फिर एक दिन ले जाकर
नाम उस का भी लिखा
दिया पाठशाला में
मेधावी चिरैया ने फिर
आगे पढ़ना शुरु किया।
आज जब रिज़ल्ट आया वो थी
प्रथम सारे जिले में
नाम रोशन कर दिया आज
मां, पिता का।
पिता जी की आंखें भी भर आयी
लगा लिया अपनें गले लाड़ से
पढ़ लिख भाई चला गया विदेश
चिरैया कलैक्टर हो कर।
मां पिता की बन गयी
बुढ़ापे में सहारा
आज पिता जी भी
सीना तान कहते हैं सब से।
चाहे बेटा हो बेटी
समाज के हर व्यक्ति के लिए
जरूरी है पढ़ाई लिखायी।
सब को पढ़ना, लिखना है जरूरी
यही है सब खुशियों की कुँजी।