मैं बेहया !
मैं बेहया !


समाज में एक औरत को
उसके नाम के अलावा
और कई नामों से
संबोधित किया जाता है।
उसका परिवार, उसके
पड़ोसी और यहाँ तक कि
कुछ ऐसे लोग जिन्हें वो
जानती भी नहीं है वो भी
उसे कभी बेशर्म तो कभी
बेहया कह देते है।
ऐसे संबोधन को सुन
पहले तो यह औरत बढ़ा
रूठ जाती थी, उदास हो
जाती थी पर मेरी कविता
की यह औरत इन सभी
नामों को स्वीकार करती
चली जाती है।
अपना नाम बेहया ही
बताती है !