मैं और तुम से हम बने
मैं और तुम से हम बने
मैं और तुम से हम बने
जब चाँद और सूरज सी साझेदारी होती है
एक ही आसमान में दोनों की चमक बिखरी होती है
तब मैं और तुम से हम बनने में
ज़िन्दगी और भी ख़ुशनुमा हो जाती है।
मैं और तुम हैं कुछ अधूरे-अधूरे से
हम बनकर ऐसे हो पूरे
मेरा मैं भी थोड़ा सा बचा रहे; तुम्हारा तुम भी.
मैं सही और तुम ग़लत
रेत सा हाथों से फिसलता गया वक़्त।
न तो मैं थी पूरी सही और न तुम थे पूरे गलत
अंतर था तो बस नज़रिये का।
जब अविश्वास होता है ;तब अधिकारों की बात होती है
'मैं और तुम' का विभाजन होता है।
जब विश्वास पनपता है तब कर्त्तव्यों की बात होती है
हम में सबकी साझेदारी और स्वीकृति होती है।